Social Realism in Jaiprakash Kardam’s Novel Chhappar
जयप्रकाश कर्दम के ‘छप्पर’ उपन्यास में सामाजिक यथार्थ
DOI:
https://doi.org/10.53573/rhimrj.2025.v12n3.007Keywords:
Dalit society, empathy, self-experience, subjugation, minority, extremismAbstract
Through his novel Chhappar, Jaiprakash Kardam attempts to portray the story of the most marginalized section of society. Set against the backdrop of a small village named Matapur in Western Uttar Pradesh, the protagonist of this novel is Chandan, who moves from the village to the city for his education. His parents dream of seeing him become a high-ranking officer. Upon arriving in the city, Chandan becomes aware of the harsh realities of urban life. His primary objective is to awaken the Dalit community, which has been trapped for centuries in ignorance and backwardness. While studying in college, he simultaneously runs a school and teaches young children himself. He believes that education is the most effective and powerful weapon to win the battle against the disparities prevailing in life and society.
Abstract in Hindi Language: जयप्रकाश कर्दम ने ’छप्पर’ उपन्यास के माध्यम से समाज के सबसे पिछड़े वर्ग की कहानी कहने की कोशिश की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव मातापुर की पृष्ठभूमि पर लिखे गए इस उपन्यास का कथा नायक चंदन है, जो गाँव से शहर पढ़ने जाता है। उसके माता-पिता की इच्छा है कि वह कोई बड़ा अधिकारी बने। शहर पहुँचकर चंदन को शहर की सच्चाई का पता चलता है। चंदन का उद्देश्य है कि वह सदियों से अज्ञानता और पिछड़ेपन की गति में पड़े हुए दलित समाज को जगाए। वह कॉलेज में पढ़ते हुए भी स्कूल चलाता है और छोटे बच्चों को स्वयं पढ़ाता है। वह जानता है कि जीवन और समाज में व्याप्त विसंगतियों के खिलाफ लड़ाई जीतने के लिए शिक्षा सबसे मारक और शक्तिशाली शस्त्र है।
Keywords: दलित समाज, सहानुभूति, स्वानुभूति, गुलामगिरी, अल्पसंख्यक, अतिवाद।
References
ज्योतिराव फुले, अनुवादक- डॉ. एल.जी. मेश्राम ’विमलकीर्ति’, ’गुलामगिरी’, सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली, चतुर्थ संस्करण - 2009, कवर फलैग से
डॉ. नरेंद्र जाधव, ’बोल महामनावाचे’, अनुवाद और संपादन (खंड -1) ग्रंथावली प्रकाशन, माटुंगा मुंबई-16. संस्करण: 24 अक्टूबर 2012, पृ. 130
जयप्रकाश कर्दम, ’छप्पर’, राहुल प्रकाशन, दिल्ली, प्र.सं. 1994, पृ. 41
वही, पृ. 09
वही, पृ.39
वही, पृ. 40
अनुवाद और संपादन डॉ. नरेंद्र जाधव, ’बोल महामनावाचे’, (खंड -1), ग्रंथाली प्रकाशन, माटुंगा मुंबई-16. संस्करणः 24 अक्टूबर 2012, पृ. 152
वही, पृष्ठ.109
वही, पृ.108
वही, पृ.35
वही, पृ.35
वही, पृ.60
वही, पृ.60
वही, पृ.68,69
वही, पृ.85
वही, पृ. 31
मोहनदास नैमिशराय, ’मुक्तिपर्व’, अनुराग प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 1999, पृ. 40
डॉ. रजतरानी ’मीनू’, ‘हिंदी दलित कथा साहित्यः अवधारणाएँ और विधाएँ’, अनामिका पब्लिशअर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्रा. लि. दरियागंज, नई दिल्ली, प्र.सं., 2010, पृ. 234